बीकानेर, 21 मार्च। वेटरनरी विश्वविद्यालय के षष्ठम् दीक्षांत समारोह में मंगलवार को पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान के 461 छात्र-छात्राओं को उपाधियों और 18 को स्वर्ण पदक तथा 01 कुलाधिपति स्वर्ण, 1 रजत एवं 1 कांस्य पदक से अलंकृत किया गया। माननीय राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री कलराज मिश्र ने समारोह में ऑनलाइन शिरकत करते हुए प्रारंभ में संविधान की प्रस्तावना और मूल कर्तव्यों का वाचन किया जिसे सभी प्रतिभागियों ने मन में दोहराया। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति सदा से पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम के अस्तित्व पर आधारित रही है। पशु-पक्षी पूजनीय, वीरता और शुभता के प्रतीक हैं। पशुधन से मनुष्य का दुग्ध पोषण भी होता है। पशु उत्पादों ने मानव जीवन में सामाजिक और आर्थिक संपन्नता के नए द्वार खोले हैं। पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान से जुड़ी शिक्षा का मूल भी यही है कि हम पशुधन संरक्षण के साथ उनके पोषण मूल्य को समझते हुए अपने भविष्य को संवारें और इसका उपयोग समर्पित होकर राष्ट्र निर्माण के लिए करें। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से पशुचिकित्सा विज्ञान को भी पंख लगे हैं आगे इस क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर शोध और अनुसंधान भी बढ़ा है। लेकिन आधुनिक विज्ञान के साथ परंपरागत मूल्यों को भी सहजते हुए आगे बढ़ने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह सुखद है कि राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय द्वारा पशु उपचार में इमेजिंग सुविधा सुलभ हो रही है। भ्रूण प्रत्यारोपण तकनीक के विकास से देशी गौवंश उत्पादन में अभिवृद्धि हो सकेगी। पी.जी. और पी.एचडी. पाठ्यक्रम अर्न्तराष्ट्रीय विद्यार्थियों के प्रवेश के निर्णय से विश्वविद्यालय को वैश्विक पहचान मिलेगी। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि राज्य सरकार स्तर पर डेयरी विज्ञान एवं खाद्य प्रोद्योगिकी महाविद्यालय के साथ ही प्रदेश में नए पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालयों की स्थापना की पहल हुई है। इससे आने वाले समय में राजस्थान देश का पहला सबसे अधिक पशुचिकित्सक बनाने वाला प्रदेश हो जाएगा।
समारोह के विशिष्ट अतिथि डॉ. बी.एन. त्रिपाठी उप-महानिदेशक (पशुविज्ञान) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) -2020 के लागू होने से पशुचिकित्सकों व कृषि शिक्षा की गुणवŸाा में भी उपेक्षाकृत सुधार होंगे जिसके कारण कुशल तकनीक अपनाने से पशुपालन व कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ेगी। शोध भी नई दिशा में हो सकेंगे। राज्य सरकार एनईपी के दिशा निर्देश को लागू करने के लिए हर संभव सम्बल प्रदान करें। पशुचिकित्सा को बेहतर बनाने के लिए पशुचिकित्सा शिक्षा में एक बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है। खासतौर पर विश्वविद्यालय में शिक्षकों की संख्या व प्रयोगशालाओं का आधुनिकीकरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। यह व्यवसाय बहुत ही संवेदनशील और वैज्ञानिक ज्ञान वाला है। पशुपालन ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का मुख्य आधार स्तम्भ है। 140 करोड़ से अधिक आबादी के देश में हमारे पशुधन की खाद्य सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका है। आज डिग्री प्राप्त करने के उपरांत पशुचिकित्सा औषधि व जैव प्रौद्योगिकी खाद्य उद्योग, मांस उद्योग, दुग्ध उद्योग जैसे उद्योगों से जुड़ने का चयन कर सकते हैं। हमारे स्नातक रोग निदान, टीकाकरण व अनुसंधान पशुगृह, वन्य जीवों आदि क्षेत्रों में भी जा सकते है। इसके अतिरिक्त शोध के उच्चस्थ संस्थाएं जैसे आईसीएआर, आईसीएमआर, सीएसआईआर, डीएसटी, आईसीएफआर, इत्यादि व राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र जैसे आरवीसी, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी आदि क्षेत्रों में जाकर राष्ट्र सुरक्षा में सहयोग प्रदान कर सकते है। राजुवास व राज्य सरकार का साधुवाद दे सकूँ कि आप द्वारा सर्वाधिक पशुचिकित्सक व पशुधन सहायक तैयार किए जा रहे हैं। जहाँ 80 निजी क्षेत्र में पशुधन सहायक संस्थान व 7 पशुचिकित्सा महाविद्यालय संचालित है।
दीक्षांत भाषण देते हुए पद्मश्री विज्ञान रत्न प्रो. एम.एल. मदन पूर्व कुलपति वेटरनरी विश्वविद्यालय मथुरा एवं कृषि विद्यापीठ अकोला (महाराष्ट्र) और पूर्व महानिदेशक (पशुविज्ञान) आई.सी.ए.आर., नई दिल्ली ने अपने दीक्षान्त उद्बोधन में कहा कि भारत अपने पशुधन से जैव विविधता का एक समृद्ध और अनूठा भंडार है जिसकी देश के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका है। पशुधन 2014-15 से 2020-21 तक 7.93 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा है। कुछ राज्यों में पशुधन योगदान 44 प्रतिशत से अधिक हो गया है। भारत हरित क्रांति के माध्यम से खाद्य आत्मनिर्भरता हुआ है। पशुधन में दूध में श्वेत क्रांति, मांस में लाल क्रंाति, मुर्गी पालन में पंख क्रांति और मत्स्य पालन में नीली क्रांति का सूत्रपात हुआ है। भारत आज दूध, दालों, जूट और संबद्ध फाइबर में दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है। अंडों और कुक्कुट जैसे कुछ उप क्षेत्रों में 11 से 17 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज हुई है। भारत ने प्रौद्योगिकी नवाचार और अनुप्रयोग के माध्यम से उपलब्धि अर्जित की। देश में पशुधन क्षेत्र स्थायी आजीविका संसाधनों को सुनिश्चित करने के साथ ही उच्च मूल्य प्रोटीन, दूध, अंडे और मांस के रूप में भोजन और पोषण प्रदान करने वाला स्थायी रोजगार सृजन भी करता है। यह क्षेत्र ग्रामीण पुरूषों और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण है और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है। पशुपालन विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है जो कमी की स्थिति में आवश्यक बीमा प्रदान करती है। राजस्थान में फसल उत्पादन के समानांतर पशुपालन भी उतना ही महत्वपूर्ण कार्य है। ऊन उत्पादन और पशुओं की बिक्री में राज्य देश में पहले स्थान पर है। 80 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण परिवार पशुपालन करते हैं जो कमी के दौरान आय का एक जरिया है। गत दशकों में एकल स्वास्थ्य द्दष्टिकोण भी महत्वपूर्ण हो गया है। जूनोटिक और संक्रामक रोग पशुओं और वन्यजीवों से उत्पन्न होते हैं। अतः पशु, मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को दुरूस्त रखने के लिए पशुचिकित्सकों की महत्ती भूमिका है। उन्होंने विद्यार्थियों का आहृवान किया कि वे ज्ञान के साथ-साथ कौशल विकास को भी विकसित करें।
समारोह के प्रारम्भ में वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति सतीश के. गर्ग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विश्वविद्यालय का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कुलपति प्रो. गर्ग ने कहा कि राजस्थान पशुचिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर अपने तीन संघटक वेटरनरी महाविद्यालयों, दो संघटक डेयरी महाविद्यालयों, नौ पशुधन अनुसंधान केन्द्रों, सोलह पशु विज्ञान केन्द्रों व एक कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से राज्य के 22 विभिन्न जिलों में पशुचिकित्सा शिक्षा, अनुसंधान, कृषि एवं पशुपालन प्रसार के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा 7 संघटक एवं 80 सम्बद्व संस्थानों में दो वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी चलाया जा रहा है। वर्ष 2023-24 की बजट घोषणा में भी माननीय मुख्यमंत्री द्वारा पशुचिकित्सा शिक्षा को विशेष महत्व देते हुए राज्य में जोबनेर (जयपुर) में नये वेटरनरी विश्वविद्यालय तथा सिरोही व बस्सी (जयपुर) में एक-एक नये पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय खोले जाने की घोषणा की है। राज्य सरकार द्वारा इन नए महाविद्यालयों के लिए शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है। इस प्रकार से राज्य में दो पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय तथा दस संघटक वेटरनरी महाविद्यालयों हो जायेगें। ऐसा गौरव हासिल करने वाला राजस्थान देश में प्रथम प्रदेश बन गया है। राज्य सरकार की ऐसी सराहनीय पहल के लिए विश्वविद्यालय परिवार की ओर से मैं हार्दिक आभार व्यक्त करता हॅूं। शैक्षणिक सत्र 2021-22 में विश्वविद्यालय के विभिन्न संघटक तथा सम्बद्ध शिक्षण संस्थानों द्वारा संचालित विभिन्न पाठ्यक्रमों में कुल 13974 छात्र पंजीकृत थे, जिसमें से 3081 बी.वी.एस.सी एण्ड ए.एच, 120 एम.वी.एस.सी, 57 पी.एच.डी. डिग्री पाठ्यक्रमों में तथा 10716 डिप्लोमा पाठ्यक्रम में पंजीकृत थे। इन्हीं मानवबल द्वारा प्रदत्त सेवा के आधार पर ही हाल ही में राजस्थान को भारत वर्ष में पहला सबसे अधिक दूग्ध उत्पादक प्रदेश बनने का गौरव प्राप्त हुआ है।
दीक्षांत अतिथि डॉ. एम.एल. मदन को डॉक्टर ऑफ साईस की मानद उपाधि से अलंकृत किया गया। समारोह के दौरान विश्वविद्यालय के त्रैमासिक न्यूजलेटर व अन्य प्रकाशनों का विमोचन भी अतिथियों व द्वारा किया गया। आर्मी बैण्ड पर राष्ट्रगान की धुन समारोह का आकर्षण रही। राज्यपाल के प्रमुख सचिव सुबीर कुमार एवं विशेषाधिकारी श्री गोविन्द जयसवाल ने भी माननीय राज्यपाल के साथ समारोह में ऑनलाइन रूप से शिरकत की। समारोह में विश्वविद्यालय के प्रबंध मंडल के सदस्य प्रो. ए.के. गहलोत, डॉ. अमित नैन, श्रीमती कृष्णा सोलंकी एवं अकादमिक परिषद सदस्यगण, प्रो. संजय कुमार शर्मा बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अम्बरिश एस. विद्यार्थी, एस.के.आर.यू. के कुलपति प्रो. अरूण कुमार, एम.जी.एस.यू. के कुलपति प्रो. विनोद कुमार सिंह, कुलसचिव बिन्दु खत्री, वित्तनियंत्रक बी.एल. सर्वा, आई.सी.ए.आर. संस्थानों के निदेशक व वैज्ञानिकगण, विश्वविद्यालय के डीन, डायरेक्टर, अधिकारी, कर्मचारी, छात्र-छात्राएं और अतिथि अधिक संख्या में उपस्थित रहे। दीक्षांत समारोह में स्नातक योग्यता प्राप्त कर लेने वाले 331 छात्र-छात्राओं को उपाधियां, स्नातकोत्तर स्तर के 96 को उपाधियां तथा 34 को विद्यावाचस्पति उपाधियां प्रदान की गई। 18 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदकों से और स्नातकोत्तर शिक्षा में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर केशव गौड़ को कुलाधिपति स्वर्ण पदक से अलंकृत किया गया। दीक्षांत समारोह को विश्वविद्यालय की वेबसाइट, फेसबुक पेज व यूटूयूब पर, सीधा प्रसाारित किया गया।
स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी
अभिषेक शर्मा, सुनील अरोड़ा, अंकिता शर्मा, सोनिया शर्मा और कृतिका धियाल ने विद्या-वाचस्पति में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। पंकल चायल, केशव गौड़, नौशाली गुजर, रंजना कुमारी, प्रेम चंद तर्ड़, विक्रम गोदारा, शिखा बिश्नोई, गरिमा राठौड़, मुकनी कुमारी, कनिका यादव, शिवाली खंडेलवाल और टीना गुर्जर ने स्नातकोŸार में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान स्नातक में हार्दिक आर्य को स्वर्ण पदक पूनम सैनी को रजत पदक और मोनिका चौधरी को कांस्य पदक से अलंकृत किया गया।
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