बीकानेर, 25 मई। वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा राज्य स्तरीय ई-पशुपालक चौपाल बुधवार को आयोजित की गई। दूध देने वाले पशुओं की उत्पादकता कैसे बढ़ाए विषय पर महाराष्ट्र के डॉ. दिनेश भोंसले ने पशुपालकों से वार्ता की। निदेशक प्रसार शिक्षा प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि पशुओं की उत्पादकता के लिए कई कारक जिम्मेदार है जिसमें पशुओं की नस्ल एवं उनका रखरखाव मुख्य कारक है। पशु खाद्य प्रबन्ध को नियंत्रित करके हम पशु को अधिक उत्पादक बना सकते है एवं पशुपालकों को भी अनावश्यक खर्चो से बचाकर उनकों आर्थिक रूप से सम्पन्न बना सकते है। आमंत्रित विशेषज्ञ डॉ. दिनेश भोंसले, निदेशक ए.बी विस्टा साउथ एशिया, पुणे (महाराष्ट्र) ने ई-चौपाल के माध्यम से पशुपालकों को विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि पशुपालन की 70 प्रतिशत लागत पशुओं के खाद्य एवं पोषण पर आती है। पशुओं को अपर्याप्त पोषण या अधिक पोषण दोनों ही पशुपालकों को आर्थिक नुकसान पहुचाता है अतः पशुओं का खाद्य प्रबन्धन उनकी नस्ल, उम्र, भार एवं उत्पादन की अवस्था के अनुरूप होना चाहिए। पशुओं को केवल सुखा चारा, केवल हरा चारा या केवल कपास नहीं खिलाना चाहिए। संतुलित पोषण से पशुओं की उत्पादकता बनी रहती है। अधिक हरे चारे की उपलब्धता की अवस्था में साईलेज बना लेना चाहिए ताकि चारे की अनुपलब्धता की अवस्था में उसे उपयोग किया जा सके। पशु खाद्य में अनाज का दलिया, चूरी, खल एवं चापड़ को खिलाना चाहिए। सुखा एवं हरा चारा 70 प्रतिशत एवं पशु बांटा 30 प्रतिशत के हिसाब से खिलाना चाहिए। शुद्ध पानी पर्याप्त मात्रा में पशुओं को उपलब्ध करवाना चाहिए। इसके साथ ही डॉ. भोंसले ने पशुपालकों को प्रोबायोटिक, बामपास फैट, बामपास प्रोटीन, रूमन बफर एवं मिनरल मिक्सचर की उपयोगिता पर भी विस्तृत जानकारी प्रदान की।
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