बीकानेर, 09 फरवरी। वेटरनरी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय द्वारा राज्य स्तरीय ई-पशुपालक चौपाल बुधवार को आयोजित की गई। पशुओं में चिंचड़ (टिक्स) की समस्या और समाधान विषय पर विशेषज्ञ जम्मू के प्रो. सुरेन्द्र कुमार गुप्ता ने पशुपालकों से वार्ता की। निदेशक प्रसार शिक्षा प्रो. राजेश कुमार धूड़िया ने विषय प्रवर्तन करते हुए बताया कि उन्नत उत्पादन हेतु पशुओं को तनाव मुक्त रखना चाहिए। मौसम में परिवर्तन, संतुलित खान-पान का अभाव एवं पशुओं में अन्तः एवं बाह्य परजीवियों का प्रकोप पशुओं में तनाव का कारण बनता है। जिससे पशुओं की उत्पादन क्षमता में गिरावट आती है एवं पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। बाह्य परजीवियों जैसे मक्खी, मच्छर, चिंचड़ आदि के प्रकोप को कम करके पशुओं को बीमार होने से बचा सकते है एवं अधिक उत्पादक बना सकते है। आमंत्रित विशेषज्ञ प्रो. सुरेन्द्र कुमार गुप्ता, निदेशक प्रसार शिक्षा, शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू ने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि पशुओं के शरीर पर बुबेलिस, हाइरलोमा आदि विभिन्न प्रजाति के भूरे एवं मटमेले रंग के छोटे-छोटे चिंचड प्राय पीछे वाले पैरों पर, थनों पर, पूछे के पीछे एवं गर्दन वाले क्षैत्र में चिपके मिलते है। जहां एक तरफ ये चिंचड़ पशु के शरीर से रक्त चुसते है वही दूसरी तरफ अपनी लार में पाये जाने वाले कीटाणुओं को पशुओं के शरीर में छोड़ते है जिससे पशु बबेसियोसिस, थाईलेरियोसिस जैसी बीमारियों से ग्रसित हो जाते है। इन बीमारियों से ग्रस्त पशुओं में तेज बुखार, कमजोरी, खुन की कमी आदि लक्षण नजर आते है। पशुओं के उत्पादन स्तर में गिरावट आ जाती है एवं पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इनकी रोकथाम हेतु पशुपालकों को नियमित पशु बाड़ो की साफ-सफाई रखनी चाहिए, पशु बाडे की दीवारो एवं फर्श में दरारो को बन्द करना चाहिए, पशुओं को सप्ताह में एक वार नहलाना चाहिए। चिचड़ का प्रकोप अधिक होने की स्थिति में पशुचिकित्सक की सहायता से पशुओं के शरीर पर चिंचड़ नाशक दवाई का स्प्रे करवाना चाहिए एवं पशुरोग का उपयुक्त ईलाज करवाना चाहिए। चिंचड़ो जीवन चक्र को तोड़ने के लिए पशु बाड़ों में भी नियमित चिंचड़ नाशक दवाई का छिड़काव करना चाहिए। पशुबाड़ो को चिचंड मुक्त रखकर पशुपालक पशुओं से अधिक उत्पादन लेकर आर्थिक मुनाफा पा सकते है।
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